दर्द बढ़ कर दवा न हो जाए ज़िंदगी बे-मज़ा न हो जाए रोकता हूँ मिज़ा पे मैं आँसू गिर के दिल की सदा न हो जाए निगह-ए-इल्तिफ़ात के सदक़े दिल की धड़कन सिवा न हो जाए रोज़ मरता हूँ रोज़ जीता हूँ तेरा वा'दा वफ़ा न हो जाए आप से शिकवा ऐ मआ'ज़-अल्लाह लब तक आ कर दुआ न हो जाए वो किसी काम का नहीं जो दिल दर्द से आश्ना न हो जाए सीना अक्सर है सोज़ से ख़ाली ज़ीस्त बे-मुद्दआ न हो जाए उफ़ ये तहज़ीब-ए-नौ की ख़ूँ-ख़्वारी ख़ून-ए-इंसाँ रवा न हो जाए दिल-लगी दिल-लगी में देख 'हबीब' इश्क़ की इब्तिदा न हो जाए