चशम-ए-ख़ूँबार सा बरसे न कभू पानी एक अब्र हर चंद करे अपना लहू पानी एक शुस्त-ओ-शू नामा-ए-आमाल की जिस से होए बरस ऐ अब्र-ए-करम मुझ पे वो तू पानी एक लाख पानी से मैं धोया न छुटा ज़ख़्म का ख़ून काम आया न मिरे वक़्त-ए-रफ़ू पानी एक आज तक अश्क मिरी आँख से गिरते हैं सफ़ेद ज़र्फ़ में अपने ये रखता है सुबू पानी एक ता-कमर अब्र-ए-मिज़ा अपना तो बरसा सौ बार न हुआ मौज-ज़नाँ ता-ब-गुलू पानी एक हम तिरी चाल से दिल क्यूँकि न हारें इस ऐ चर्ख़ बाज़ी दुश्वार है तुझ से तो अदू पानी एक बाज़ी-ए-मुर्ग़ में भी हार रही 'ग़ाफ़िल' की तुझ से जीता न वो ऐ अरबदा-जू पानी एक