चश्म-ए-नम-दीदा सही ख़ित्ता-ए-शादाब मिरा रात की रात महकता है गुल-ए-ख़्वाब मिरा अब तही-रख़्त भी हो कर मैं तही-रख़्त नहीं ख़्वाहिश-ए-बादिया-पैमाई है अस्बाब मिरा सब्त कर और कोई मोहर मिरे होंटों पर क़ुफ़्ल-ए-अबजद से नहीं बंद हुआ बाब मिरा साहिल-ए-चश्म पे कपड़ों को सुखाने वाले तू ने कब पार किया था दिल-ए-पायाब मिरा नाम मेरा तो किया उस ने क़लम-ज़द लेकिन दफ़्तर-ए-इश्क़ से ख़ारिज न हुआ बाब मिरा जिस क़दर आई फ़राख़ी मिरे दिल में 'ताबिश' उतना ही तंग हुआ हल्क़ा-ए-अहबाब मिरा