चौंक उट्ठा हूँ तिरे लम्स के एहसास के साथ आ गया हूँ किसी सहरा में नई प्यास के साथ तब भी मसरूफ़-ए-सफ़र था मैं अभी की मानिंद ये अलग बात कि चलता था किसी आस के साथ ढूँढता हूँ मैं कोई तर्क-ए-तअल्लुक़ का जवाज़ अब गुज़ारा नहीं मुमकिन दिल-ए-हस्सास के साथ हो रहा है असर-अंदाज़ मिरी ख़ुशियों पर उम्र का रिश्ता-ए-देरीना जो है यास के साथ जिस्म के शीश-महल की है यही उम्र जनाब जब तलक निभती रहे तेशा-ए-अनफ़ास के साथ