कर चुका क़ैद से जिस वक़्त कि आज़ाद मुझे हाथ मलता ही रहा देख के सय्याद मुझे उम्र भर यूँ तो कभी ली भी न करवट पस-ए-मर्ग हैफ़ रह-रह के किया करते हैं अब याद मुझे हुक्म दरबाँ को है ज़िन्हार न आने पाए ग़ैर के सामने करते हैं मगर याद मुझे बाग़बाँ गुलशन-ए-आलम का मैं वो बुलबुल हूँ ताएर-ए-सिदरा कहा करता है उस्ताद मुझे हम-सफ़ीरों को मिरा हाल खुलेगा पस-ए-मर्ग देखना दिल में करेंगे वो बहुत याद मुझे सहन-ए-गुलशन में मिरे फूल करेंगे गुलचीं रोएगा सूना क़फ़स देख के सय्याद मुझे राह-ए-उल्फ़त में मुलाक़ात हुई किस किस से दश्त में क़ैस मिला कोह में फ़रहाद मुझे ग़ैब से होते हैं इल्क़ा मिरे दिल में मज़मून देख फ़ैज़ान सुख़न का है ख़ुदा-दाद मुझे सब्ज़ बाग़ आता है दुनिया का नज़र जब 'रा'ना' याद आती है बहुत हसरत-ए-शद्दाद मुझे