चेहरा तमाम ज़िंदगी तस्वीर एक पल इतने तवील ख़्वाब की ता'बीर एक पल वो साँस मेरे जिस्म से हो कर गुज़र गई ठहरा नहीं हदफ़ पे तिरा तीर एक पल इक सानेहा कि रौशनी करता है चार-सम्त इक लौ कि छोड़ती नहीं तासीर एक पल जैसे किसी तने से जुड़ा हो तमाम पेड़ मेरे अज़ल अबद से बग़ल-गीर एक पल सब कुछ नए सिरे से बनाना पड़ा मुझे रोकी थी दरमियान में ता'मीर एक पल