इक तिरे साथ वफ़ा करने की तय्यारी में दिन गुज़रते रहे औरों की वफ़ादारी में मेरे होने पे है एहसास-ए-ख़ुदा की बुनियाद ख़ाक का होना ज़रूरी है शजर-कारी में शाख़ से शाख़ लिपटती है हवा चलने पर सर पे छत आम नज़र आती नहीं यारी में कहीं ऐसा न हो बुलबुल की नज़र भी पड़ जाए फूल ने फूल को देखा नहीं हुश्यारी में कुन हटा और फ़य-कुन का कोई मतलब न रहा ये अना होती है फ़नकार की फ़नकारी में तुझ को तरतीब लगाते हुए इस ध्यान में हूँ कौन सा दुख है जो रक्खा नहीं अलमारी में