चेहरे पे थोड़ी रक्खी है दिल में बेताबी रक्खी है इक दो दिन से जीने वालो हम ने काफ़ी जी रक्खी है दिल के शजर ने किस मेहनत से इक इक शाख़ हरी रक्खी है वस्ल हुआ पर दिल में तमन्ना जैसी थी वैसी रक्खी है ग़ैर की क्या रक्खेगा ये दरबाँ ज़ालिम ने किस की रक्खी है हवस में कुछ भी कर सकते हो इश्क़ में पाबंदी रक्खी है रिंद खड़े हैं मिम्बर मिम्बर और वाइ'ज़ ने पी रक्खी है राख क़लंदर की ले जाओ आग कहाँ बाक़ी रक्खी है इक तो बातूनी है 'ख़ावर' ऊपर से पी भी रक्खी है