छोड़ कर चल दिया ग़ुर्बत में वही दिल मुझ को एक हमदर्द मिला था जो ब-मुश्किल मुझ को अब सिवा ग़म नहीं कुछ ज़ीस्त का हासिल मुझ को ख़ौफ़-ए-गिर्दाब न दरकार है साहिल मुझ को दिल भी क़स्साम-ए-अज़ल ने वो दिया क़िस्मत से जिस ने दुनिया में न रक्खा किसी क़ाबिल मुझ को मुझ को क्या ग़म जो हैं तारीक अदम के रस्ते दाग़-ए-दिल होंगे चराग़-ए-रह-ए-मंज़िल मुझ को मंज़िलें इश्क़ की मुश्किल थीं ख़तरनाक भी थीं मिल गया दिल सा मगर रहबर-ए-कामिल मुझ को हसरत-ओ-यास-ओ-अलम रह गए बैरून-ए-लहद क़ाफ़िले वालों ने छोड़ा सर-ए-मंज़िल मुझ को फ़िक्र कुछ शेर-ओ-सुख़न की भी करूँ मैं 'शो'ला' दें जो फ़ुर्सत कभी अफ़्क़ार-ओ-मशाग़िल मुझ को