ज़ख़्म खाते हैं और मुस्कुराते हैं हम हौसला अपना ख़ुद आज़माते हैं हम आ लगा है किनारे सफ़ीना मगर शोर तो आदतन ही मचाते हैं हम हम जो डूबें तो कोई न फिर बच सके ऐसा सागर में तूफ़ाँ उठाते हैं हम चूर कर भी चुके दिल के शीशे को वो अपनी हिम्मत है फिर चोट खाते हैं हम बे-रुख़ी से जो दिल तोड़ देते हैं 'जोश' उन के ही प्यार के गीत गाते हैं हम