छोड़ कर जन्नत सी गलियाँ गाँव से आना पड़ा एक रोटी के लिए ही इतना जुर्माना पड़ा रास आती थी न माँ की रोटियाँ घी से लगी हाए इस प्रदेश में फिर भूका सो जाना पड़ा सा रेगा मापा धानी सा सानी धा पा माग रे साज़ गर रूठे जो मुतरिब सरगमें गाना पड़ा रूह देगी साथ तेरा जिस्म बस कार-ए-हवस वो समझता ही नहीं था उस को समझाना पड़ा चाहतों की आस में ढूँढा ज़माना ऐ 'कशिश' तेरी ख़ातिर दूसरे लोगों को ठुकराना पड़ा