छोड़ मावा-ए-ज़क़न ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ में फँसा मिस्ल-ए-यूसुफ़ मैं निकल चाह से ज़िंदाँ में फँसा सैल-ए-अश्क आज रुकी आँख से गिरते ही मगर फिर कई लख़्त-ए-जिगर दीदा-ए-गिर्यां में फँसा कुछ भी वक़्फ़ा हो तो गुलशन से ले आएँ सय्याद रह गया है दिल-ए-ग़म-कश गुल ओ रैहाँ में फँसा खींच दामन रखें हम यार को किस तरह कि हाथ एक तो दिल पे है और एक गरेबाँ में फँसा ऐ कि चाहे है तू दीवान को 'क़ाएम' के तो देख कहीं होगा किसी ख़ु़म्मार की दुक्काँ में फँसा