छुप कर कहीं तस्कीन-ए-नज़र बैठ गया है देखो उसे ढूँडो वो किधर बैठ गया है दिल की तो वो हालत है कि क्या तुझ को बताएँ सुन कर तिरे जाने की ख़बर बैठ गया है इस बार तो सीधा ही लगा दिल पे निशाना सीधा ही तिरा तीर-ए-नज़र बैठ गया है रातों को सताने लगी फिर याद तुम्हारी लगता है हमें हिज्र का डर बैठ गया है हम जैसों की फिर पूछ परख होने लगी है फिर हम में कोई अहल-ए-हुनर बैठ गया है मैं ख़ुद ही फ़रिश्तों की जमाअत से नहीं हूँ पर मेरे जो अंदर था उधर बैठ गया है