अब इस के सिवा और न कुछ काम करेंगे जब इश्क़ न कर पाएँगे आराम करेंगे हम बज़्म से उठ कर तिरी ये सोच रहे हैं दिन कैसे गुज़ारेंगे कहाँ शाम करेंगे दिल कर दिया उन माह-जबीनों के हवाले अब जाँ भी उन्ही लोगों को इनआ'म करेंगे जब उन से मिरा कोई तअ'ल्लुक़ ही नहीं है क्यों लोग मुझे मुफ़्त में बदनाम करेंगे अब तक तो हमें पीर-ए-मुग़ाँ देख रहे थे अब शैख़ हमें दाख़िल-ए-इस्लाम करेंगे