छुप के नज़रों से इन आँखों की फ़रामोश की राह अब जो आता है कभी दिल में तो वो गोश की राह आगे जूँ अश्क वो रहता था सदा पहलू में क्यूँ अब उस तिफ़्ल ने गुम की मिरी आग़ोश की राह क्यूँके पोंछेगा वो आ कर मिरे आँसू हैहात कूचे सब अश्क से गिल हैं नहीं पा-पोश की राह भर सफ़र नाम जपूँगा तिरा तो राह कटे यूँ तो तय होगी न उस रह-रव-ए-ख़ामोश की राह छोड़ कर कूचा-ए-मय-ख़ाना तरफ़ मस्जिद के मैं तो दीवाना नहीं हूँ जो चलूँ होश की राह यूँ तो आता नहीं ऐ काश मिरे घर कोई फेरे नश्शे में ग़लत उस बुत-ए-मय-नोश की राह डस गईं हाए मिरे दिल के तईं आज 'बक़ा' नागिनें ज़ुल्फ़ की उस सर से उतर दोश की राह