छुपा हुआ जो नुमूदार से निकल आया ये फ़र्क़ भी तिरे इंकार से निकल आया पलट पड़ा जो मैं सर फोड़ कर मोहब्बत में तो रास्ता इसी दीवार से निकल आया मुझे ख़रीदना कुछ भी न था इसी ख़ातिर मैं ख़ुद को बेच के बाज़ार से निकल आया अभी तो अपने खंडर ही की सैर थी बाक़ी ये तू कहाँ मिरे आसार से निकल आया बहुत से और तिलिस्मात मुंतज़िर हैं मिरे अगर कभी तिरे असरार से निकल आया मुझे भी दे रहे थे ख़िलअत-ए-वफ़ा लेकिन नज़र बचा के मैं दरबार से निकल आया सिरे से जो कहीं मौजूद ही न था आख़िर वो नक़्स भी मिरे किरदार से निकल आया नई फ़ज़ा नए आफ़ाक़ हैं उसी के लिए जो आज उड़ती हुई डार से निकल आया उसी को एक ग़नीमत क़रार दूँगा 'ज़फ़र' जो एक शेर भी तूमार से निकल आया