छुप-छुप के फिर निगाह-ए-करम कर रहा है कौन आँखों में अश्क बाद-ए-सितम भर रहा है कौन मरना रह-ए-वफ़ा में है ख़ुद मुस्तक़िल हयात मरने की आरज़ू थी मगर मर रहा है कौन मंज़िल पे आ के ख़ुद मुझे होना पड़ा तबाह महव-ए-नज़र फ़रेबी-ए-रहबर रहा है कौन अच्छा हुआ जो शहर-ए-तमन्ना उजड़ गया ख़ुद इस दयार-ए-शौक़ में आ कर रहा है कौन 'जर्रार' हर क़दम पे मिले हैं सुख़न-फ़रोश इस दौर-ए-ख़ुद-ग़रज़ में सुख़नवर रहा है कौन