छूटेगा जी न जी न गुलिस्तान-ए-आरज़ू बुलबुल के चूतड़ों में है पैकान-ए-आरज़ू साले जो तू है शम्-ए-शबिस्तान-ए-आरज़ू कहते हैं हम को सोख़्ता-सामान-ए-आरज़ू कैसे निकालूँ दिल के मैं पैकान-ए-आरज़ू ये तो नमक-हराम है मेहमान-ए-आरज़ू उल्लू का पट्ठा ग़ैरों को बोसा दिए गया फैला ही रह गया मिरा दामान-ए-आरज़ू देखा जो मेरा आगे से कुर्ता फटा हुआ बोले कि आओ चाक-गरेबान-ए-आरज़ू माँगा जो उन से बोसा-ए-लब मुस्कुरा दिए फूलों से भर दिया मिरा दामान-ए-आरज़ू चूल्हे में जल के हो गया बीवी का इंतिक़ाल हम फिर रहे हैं सोख़्ता-सामान-ए-आरज़ू अंधेर हो गया दिल-ए-ख़ाना-ख़राब में गुल हो गई है शम्-ए-शबिस्तान-ए-आरज़ू वहशत पे मेरी रहम जो आया तो ये कहा आओ इधर को चाक-गरेबान-ए-आरज़ू बुनियाद डाल दी थी तुम्हारे ख़याल की ता'मीर जब हुआ मिरा ऐवान-ए-आरज़ू वा'दा किया है 'बूम' से मिलने का रात को उमड़ा हुआ है सीने में तूफ़ान-ए-आरज़ू