दुश्मन के साथ यार भी बोला शराब दो पीछे पड़े हैं साक़ी के ख़ाना-ख़राब दो अपने तो चार बोसों की क़ीमत भी माँग ली मेरा जो माल खाया है उस का जवाब दो बेहद बढ़ी हैं साक़ी की बद-इंतिज़ामियाँ सौ बोतलें शराब की हैं और कबाब दो दरिया-ए-इश्क़ की उन्हें मौजें न तोड़ दें उभरे हैं बहर-ए-हुस्न में उन के हबाब दो आशिक़ हैं तेरे बाप के नौकर नहीं हैं हम कहना न हम से फिर मिरी टाँगें तो दाब दो इन टेढ़ी टेढ़ी बातों के क़ाइल नहीं हैं हम दो तो सवाल-ए-वस्ल का सीधा जवाब दो घर मैं ने छोड़ा ग़ैर ने घर वाली छोड़ दी फिरते हैं तेरे इश्क़ में ख़ाना-ख़राब दो मेरी तरफ़ को ख़ाली पियाला करो अता नुतफ़ा-हराम ग़ैर को भर कर शराब दो कहता है कोई 'बूम' मुझे और कोई चुग़द उल्फ़त में तेरी मुझ को मिले हैं ख़िताब दो