छुटी उम्मीद तो मैं हाल-ए-दिल कहने से क्यूँ डरता मसल मशहूर है सरकार मरता क्या नहीं करता बहुत अच्छा हुआ दुश्मन ने मुझ से दुश्मनी कर ली सिवा मेरे न जाने और किस किस को ये ले मरता अगर दुश्मन से ऐसे पेश आते तो मज़ा पाते करूँ क्या अर्ज़ जो बरताव मुझ से आप ने बरता किसी पैमाँ-शिकन ने रुकते रुकते बात तो कर ली जो वा'दे ही पे हम उड़ते तो ये करता न वो करता नहीं मुझ से तिरी बे-ए'तिनाई क़ाबिल-ए-हैरत ग़रीब इंसान दुनिया की निगाहों में नहीं भरता 'सफ़ी' ने ठोकरें खा के भी अपनी वज़्अ कब बदली समझ वाला अगर होता हसीनों से बहुत डरता