कब तसव्वुर में तिरे दीदा-ए-तर बंद किया ख़ाना-ए-आइना में तुझ को नज़र-बंद किया क्या नज़ाकत है सबा उस की कमर की जिस ने सुब्ह-दम तार-ए-रग-ए-गुल से क़मर-बंद किया दिल का अहवाल जो खुलता नहीं तू ने ऐ चश्म क़ासिद-ए-अश्क को आने से मगर बंद किया राहत-ए-ख़्वाब-ए-अदम देख के सब ने यक-दस्त नक़्श-ए-पा से कफ़-ए-हर-ख़ाक में दर-बंद किया देख 'मारूफ़' कि उस शोख़ ने शब को यक-दस्त ताइर-ए-रंग-ए-हिना को ब-हुनर बंद किया