चीख़ते हैं दयार रातों में ले लो राह-ए-फ़रार रातों में रोज़ होता है मक़बरा कमरा और बिस्तर मज़ार रातों में धड़कनें गूँजती हैं सीने में बढ़ता है इज़्तिरार रातों में मेरे शेवन पे मुस्कुराता है मेरा पर्वरदिगार रातों में तीरगी मेरे दिल में ख़ंजर सी हो रही आर-पार रातों में नींद है लैस ज़ेर करने को और मैं होशियार रातों में मेरे रोने से सब मलक मुझ पर हो रहें जाँ-निसार रातों में बैन करती हैं हूरें सिरहाने मेरे गिर्द-ए-मज़ार रातों में कोई तेरी यहाँ नहीं सुनता अपने रब को पुकार रातों में