अज़िय्यतें यूँ बढ़ा रहा हूँ मैं दिल की गर्दन दबा रहा हूँ वो हाथ में दिल थमा के बोले सँभालो इस को मैं जा रहा हूँ ख़ुदा अलीम-ओ-बसीर है जब तो हाल-ए-दिल क्यों सुना रहा हूँ नया नहीं है ये इश्क़ मेरा अज़ल से ही मुब्तला रहा हूँ मुझे फ़रिश्ता न बोल प्यारे जा पूछ उन से मैं क्या रहा हूँ हिजाब का है अज़ाब वर्ना ख़ुदा से कब मैं जुदा रहा हूँ