चीख़ती गाती हवा का शोर था जिस्म तन्हा जाने क्या सोचा किया मकड़ियों ने जब कहीं जाला तना मक्खियों ने शोर बरपा कर दिया वो ख़ुशी के रास्ते का मोड़ था मैं बगूला बन के रस्ता खोजता मैं दरख़्तों से ख़ुशी का रास्ता जंगलों में अब चलूँगा पूछता अपने हाथों से सितारे तोड़ कर मैं जलाऊँगा घटाओं में दिया हर तरफ़ तो उड़ रही है धूल सी आँख अपनी मैं कहाँ तक मूँदता