चिलचिलाती धूप मंज़िल दूर तन्हा रास्ते देखते हैं हम फ़क़ीरों का तमाशा रास्ते मस्लहत-आमेज़ है रस्म-ए-वफ़ा भी आज-कल दोस्ती की आड़ में निकले हैं क्या क्या रास्ते शर्त है अज़्म-ए-जवाँ ज़ौक़-ए-सफ़र तर्क-ए-मक़ाम मंज़िलें बढ़ कर करेंगी ख़ुद ही पैदा रास्ते हो रही है आज फिर महसूस यादों की चुभन डस रहे हैं आज फिर मुझ को ये तन्हा रास्ते 'चाँद' अपनी ज़ीस्त इक बहते हुए दरिया सी है पत्थरों में भी जो कर लेता है पैदा रास्ते