चिल्ला रही हैं जिस पे ज़बानें लहू लगी ये वो सदा थी जो मुझे बार-ए-गुलो लगी क्या क्या न मिस किया तुझे मैं ने फ़िराक़ में लेकिन तिरी कमी जो तिरे रू-ब-रू लगी मैं तब क़रार दूँगा तुझे अपना हम-सुख़न जब मेरी ख़ामुशी भी तुझे गुफ़्तुगू लगी अब घिर के रह गया हूँ अजब अज़दहाम में हर आरज़ू की पुश्त से है आरज़ू लगी ऐ हसरत-ए-कमाल कुछ अपना ख़याल कर मर ही न जाए यूँ मिरे सीने से तो लगी बदनाम हो गए हैं जिसे लिख के आज हम कल देखिएगा फ़िल्म यही कू-ब-कू लगी बर्दाश्त का अज़ाब मिरी ख़ामुशी से पूछ तोपें सदाओं की हैं मिरे चार सू लगी