चिलमन से जो दामन के किनारे निकल आए वारफ़्ता-निगाही के सहारे निकल आए पैमाना-ब-कफ़ साथ तुम्हारे निकल आए हंगामा-ए-हस्ती से किनारे निकल आए इक सादगी-ए-हुस्न की मासूम अदाएँ रंगीन मज़ामीं के इशारे निकल आए दौलत का फ़लक तोड़ के आलम की जबीं पर मज़दूर की क़िस्मत के सितारे निकल आए सब भूल गए पेच-ओ-ख़म-ए-होश में रस्ते इस राह पे कुछ इश्क़ के मारे निकल आए सब डूब गए तल्ख़ी-ए-नाकामी-ए-ग़म में कुछ आप के दामन के सहारे निकल आए गुस्ताख़ी-ए-बाराँ से वो पैराहन-ए-पुर-नम भीगे हुए जल्वों से शरारे निकल आए रुख़्सत के वो आँसू वो निगाहों की उदासी थी शाम मगर सुब्ह के तारे निकल आए आँखों में नज़र आने लगे ख़ून के आँसू उट्ठो कि बस अब सुर्ख़ सितारे निकल आए रिज़वाँ से बग़ावत है 'नुशूर' और मय-ए-कौसर उक़्बा में भी कुछ काम हमारे निकल आए