दिल इश्क़ में उन के हारते हैं काँधे से ये बोझ उतारते हैं मिलता नहीं उन का कुछ ठिकाना हर जा हम उन्हें पुकारते हैं ले ले के किसी का नाम हर दम हम उम्र के दिन गुज़ारते हैं उस बिगड़े हुए का क्या ठिकाना वो आप जिसे सँवारते हैं होते हैं वही 'रशीद' मायूस हर तरह जो जान मारते हैं