चुभता अगरचे पावँ में काँटा चला गया लेकिन सफ़र तवील था चलता चला गया वो भी कहीं पे भीड़ में मुझ से बिछड़ गई उक्ता के मैं भी छोड़ के दुनिया चला गया रुख़्सत हुआ तो आँख में आँसू तलक न थे हँसता हुआ वो हाथ हिलाता चला गया मुद्दत के बाद सामना इक दोस्त से हुआ कुछ देर ठहरा मुझ को भी देखा चला गया ख़ालिस ख़ुदा के वास्ते होती कोई नमाज़ ज़ाएअ' हमारा आज भी सज्दा चला गया हम सोचते हैं बैठ के ख़ल्वत में जब कभी 'शाहिद' हमारे आगे से क्या क्या चला गया