चुप गुज़र जाता हूँ हैरान भी हो जाता हूँ और किसी दिन तो परेशान भी हो जाता हूँ सीधा रस्ता हूँ मगर मुझ से गुज़रना मुश्किल गुमरहों के लिए आसान भी हो जाता हूँ फ़ाएदा मुझ को शराफ़त का भी मिल जाता है पर कभी बाइस-ए-नुक़सान भी हो जाता हूँ अपने ही ज़िक्र को सुनता हूँ हरीफ़ों की तरह अपने ही नाम से अंजान भी हो जाता हूँ रौनक़ें शहर बसा लेती हैं मुझ में अपना आन की आन में सुनसान भी हो जाता हूँ ज़िंदगी है तो बदल लेती है करवट 'शहपर' आदमी हूँ कभी हैवान भी हो जाता हूँ