हमारे हक़ में कोई इंक़लाब है कि नहीं हमारी सम्त खुला दिल का बाब है कि नहीं वो इक सवाल-ए-तमन्ना जो बार बार हुआ उस इक सवाल का कोई जवाब है कि नहीं वरक़ वरक़ पे तिरा नाम जिस में लिक्खा है वफ़ा-ओ-मेहर की वो दिल किताब है कि नहीं तिरा गुनाह भी वाइ'ज़ सवाब है लेकिन हमारे नेक अमल का सवाब है कि नहीं तुम्हारे नाम मिरे दिल की धड़कनें जो हुईं तुम्हारे दिल में कुछ उन का हिसाब है कि नहीं है मेरा ज़ेहन तो तख़्लीक़-ए-ख़्वाब में मसरूफ़ तुम्हारे ज़ेहन में ताबीर-ए-ख़्वाब है कि नहीं मैं दिल की बात 'मुनव्वर' ज़रूर उस से करूँ समाअ'तों की मगर उस को ताब है कि नहीं