चुपके-चुपके आँख जो शर्मा रही है फिर कहानी इश्क़ की दोहरा रही है धीमी धीमी तिश्नगी की लज़्ज़तों से लम्हा लम्हा रुत बदलती जा रही है वो थकन जो मंज़िलों तक आ गई थी अब लबों पर मुस्कुराती जा रही है मंज़रों से किस क़दर मायूसियाँ हैं दूर तक इक ख़ामुशी लहरा रही है वो नज़र जो सोचती ही रह गई थी अब उदासी का चलन अपना रही है फिर किसी हर्फ़-ए-तही के ज़ाइक़े की आरज़ू होंटों पे सजती जा रही है सोचती सी तिश्नगी हर्फ़-ओ-सदा की एक नुक़्ते पर सिमटती जा रही है कुछ उजालों कुछ अँधेरों में बटी सी ज़िंदगी सद-रंग होती जा रही है फिर किसी मफ़्हूम-ए-अव्वल की ख़बर सी इक मधुर मुस्कान खिलती जा रही है कुछ जवाँ सी क़ुर्बतों की सनसनाहट शबनमी रिश्तों में ढलती जा रही है