चूर थे लोग जो संगीनी-ए-हिजरत से यहाँ साँस भी आता नहीं उन को सुहुलत से यहाँ वो किसी फूल किसी ग़ुंचे के हक़दार नहीं दश्त गुलज़ार बनाते हैं जो मेहनत से यहाँ चोग़ा पहनाया गया झूट का सच्चाई को और मआ'नी लिए नफ़रत के मोहब्बत से यहाँ हम ने बुनियाद रखी ज़हर-बुझे सज्दों की तेग़ का काम लिया हम ने इबादत से यहाँ हाथ हालात ने डाले हैं गरेबानों में ज़िंदगी कैसे गुज़ारे कोई इज़्ज़त से यहाँ पेट पे बाँधा गया सब्र का भारी पत्थर और गुज़ारा गया हर लम्हा मशक़्क़त से यहाँ साहब-ए-मिम्बर-ओ-मेहराब भी क्या भूका है पेट की आग बुझाता है शरीअ'त से यहाँ साँस चुभता रहा काँटे की तरह दिल में 'नबील' जिस्म ढलते रहे छालों में अज़िय्यत से यहाँ