चुस्त कमर का क्या सबब तंग क़बा की वज्ह क्या हम तो हैं आप सर-ब-कफ़ हम से अदा की वज्ह क्या ख़ाक में जो मिला हो ख़ुद उस पे सितम से क्या हुसूल हुस्न की ये सरिश्त है वर्ना जफ़ा की वज्ह क्या अपनी हैं जैसी ख़स्लतें मुझ पे भी है गुमाँ वही ये नहीं गर सबब तो फिर तर्क-ए-वफ़ा की वज्ह क्या मशरब-ए-इश्क़ में दिला कुफ़्र है यार से रिया जब कि बुतों का ध्यान हो ज़िक्र-ए-ख़ुदा की वज्ह क्या आज किए हज़ार क़त्ल कल किए और भी सिवा शग़्ल ये जिस निगह का हो उस को हया की वज्ह क्या रूह-ओ-जसद का साबिक़ा कितने दिनों का है भला दोनों की जिंस दो है जब उन में वफ़ा की वज्ह क्या सदमा-ए-दर्द-ओ-रंज-ओ-ग़म तूल-ए-फ़िराक़ का अलम हैं ये हवादिसात चंद उन की बक़ा की वज्ह क्या सुन लें जो वो ज़हे-नसीब गर न सुनें तो क्या गिला है ये उन्हीं से गुफ़्तुगू तर्क-ए-दुआ की वज्ह क्या मालिक-ए-दिल हैं जब वही जब है उन्हीं का इख़्तियार मुर्तक़िब-ए-गुनाह क्यूँ जुर्म-ओ-ख़ता की वज्ह क्या रोए हैं हम ज़रूर 'शाद' तब तो है लब पे आह-ए-सर्द मेंह न बरस गया तो फिर ठंडी हवा की वज्ह क्या