क़फ़स में अश्क-ए-हसरत पर मदार-ए-ज़िंदगानी है यही दाने का दाना है यही पानी का पानी है मिले थे आज बरसों में मगर अल्लाह की क़ुदरत वही सूरत वही रंगत वही जोश-ए-जवानी है हमें वो जान भी लेंगे हमें पहचान भी लेंगे उतर जाएगा सब नश्शा अभी चढ़ती जवानी है कलेजे से लगा रख्खूँ न क्यूँ दर्द-ए-जुदाई को यही तो इक दिल-ए-मरहूम की बाक़ी निशानी है ये सच है या ग़लत हम ने सुना है मरने वालों से तिरे ख़ंजर में क़ातिल चश्मा-ए-हैवाँ का पानी है बताए जाते हैं औसाफ़ वो अपनी अदाओं के ये शान-ए-दिल-रुबाई है ये तर्ज़-ए-जाँ-सतानी है यहाँ क्या जानिए किस तरह देखा है तसव्वुर में वहाँ अब तक वही पर्दे के अंदर लन-तरानी है करें तस्ख़ीर आओ मिल के हम तुम दोनों आलम को इधर जादू-निगाही है उधर जादू-बयानी है 'जलील' इक शेर भी ख़ाली न पाया दर्द ओ हसरत से ग़ज़ल-ख़्वानी नहीं ये दर-हक़ीक़त नौहा-ख़्वानी है