क्यूँ न हो दाद-तलब हिम्मत-ए-मर्दाना-ए-दिल माइल-ए-हुस्न-ए-जहाँ-सोज़ है परवाना-ए-दिल एक इबरत का मुरक़्क़ा' है अलम-ख़ाना-ए-दिल हसरत-ओ-यास का अफ़्साना है अफ़्साना-ए-दिल जिस को रहती है किसी और के जल्वे की तलाश उस ने देखा ही नहीं जल्वा-ए-जानाना-ए-दिल अब मैं समझा कि मोहब्बत में असर है कितना लोग सुनते हैं बड़े शौक़ से अफ़्साना-ए-दिल क़ाबिल-ए-दाद है ये शौक़-ए-तलब ऐ साक़ी ले के आया हूँ मैं टूटा हुआ पैमाना-ए-दिल इक ज़माने को जिला देता है जल कर ऐ 'अर्श' शोला-ए-बर्क़-ए-जहाँ-सोज़ है परवाना-ए-दिल