क्या चारा करें क्या सब्र करें जब चैन हमें दिन-रात नहीं ये अपने बस का रोग नहीं ये अपने बस की बात नहीं जो उस ने किया अच्छा ही किया जो हम पे हुआ अच्छा ही हुआ अब गिर्या-ओ-ग़म कुछ चीज़ नहीं अब नाला-ए-ग़म कुछ बात नहीं हम सब्र-ओ-रज़ा के बंदे हैं जो तुम ने किया सब झेल लिया अब दिल में भी अफ़्सोस नहीं अब लब पर भी हैहात नहीं जब उल्फ़त का दम भर बैठे जब चाल ही उल्टी चल बैठे नादान हो फिर क्यूँ कहते हो इस चाल में बाज़ी मात नहीं कुछ रंज नहीं कुछ फ़िक्र नहीं दुनिया से अलग हो बैठे हैं दिल चैन से है आराम से है आलाम नहीं आफ़ात नहीं तुम लुत्फ़ को जौर बताते हो तुम नाहक़ शोर मचाते हो तुम झूटी बात बनाते हो ऐ 'अर्श' ये अच्छी बात नहीं