दाद भी फ़ित्ना-ए-बेदाद भी क़ातिल की तरफ़ बे-गुनाही के सिवा कौन था बिस्मिल की तरफ़ मंज़िलें राह में थीं नक़्श-ए-क़दम की सूरत हम ने मुड़ कर भी न देखा किसी मंज़िल की तरफ़ मक़्तल-ए-नाज़ से गुज़रे तो गुज़रने वाले फूल कुछ फेंक गए दामन-ए-क़ातिल की तरफ़ झिलमिलाते नहीं बे-वजह तो महफ़िल के चराग़ इक नज़र देख तो लो साहब-ए-महफ़िल की तरफ़ कितनी बे-कैफ़ हैं साहिल की फ़ज़ाएँ या रब कोई तूफ़ान का रुख़ मोड़ दे साहिल की तरफ़ याद आता है वो अंदाज़-ए-तजाहुल ऐ दोस्त बात औरों से मगर रू-ए-सुख़न दिल की तरफ़ ज़िक्र आया था हयात-ए-अबदी का 'ताबाँ' लोग क्यूँ तकने लगे कूचा-ए-क़ातिल की तरफ़