मुझ को यूँ मुझ से मिला दे कोई मैं सदा दूँ तो सदा दे कोई मैं ने पूछा तो है अंजाम-ए-वफ़ा अब ये डर है न बता दे कोई आरज़ू ये है कि ख़ुश्बू अपनी मेरी साँसों में बसा दे कोई उस के रुख़्सार-ए-शफ़क़-गूँ की चमक मेरे होंटों पे सजा दे कोई जो जफ़ा प्यार से तू ने की है उस को क्यूँ कर न भला दे कोई ख़ून-ए-दिल से जो लिखा है मैं ने काश अश्कों से मिटा दे कोई नज़रें फिर उस को उठा भी न सकें ख़ुद को इतना न गिरा दे कोई इश्क़ में बाँध के पैमान-ए-वफ़ा मुझ को जीने की दुआ दे कोई समझें हम ज़हर-ए-तमन्ना उस को अपनी आँखों से पिला दे कोई आस ही टूट न जाए ख़ालिद जब दवा दे न दुआ दे कोई