दाग़ जलता है मिरे सीने में दिल पिघलता है मिरे सीने में शीशा-ओ-संग मुक़ाबिल आए कुछ चटख़्ता है मिरे सीने में रात भर राज़-ए-ख़िरद सिर्र-ए-जुनूँ दिल उगलता है मिरे सीने में तेरा ख़त है कि क़लम है मेरा कुछ तो जलता है मिरे सीने में इस लिए दश्त से मानूस हूँ मैं शहर बस्ता है मिरे सीने में बाँटते रहते हैं वो लाल-ओ-गुहर घन बरसता है मिरे सीने में चूड़ियाँ खंकी हैं फिर रात गए हुस्न सजता है मिरे सीने में फिर ख़िज़ाँ में खिला बाग़ी ग़ुंचा दिल लरज़ता है मिरे सीने में इस्म-ए-साक़ी वही इस्म-ए-आज़म कौन जपता है मिरे सीने में दिल मिरा क़ुर्रत-ओ-मंसूर का नाम ले के चलता है मिरे सीने में बे-ख़ुदी और ख़ुदी का तागा जा उलझता है मिरे सीने में बादा 'सुक़रात' वहाँ पीता है दम निकलता है मिरे सीने में बादा 'सुक़रात' से 'तलअ'त' को मिला सच पनपता है मिरे सीने में