ये जो तुम देख रहे हो ख़स-ओ-ख़ाशाक पे ख़ाक इस से बढ़ कर है मिरी ख़्वाहिश-ए-सद-चाक पे ख़ाक गर कोई ख़्वाब नहीं है मिरी आँखों में तो फिर मेरे सामान पे हसरत मिरी इम्लाक पे ख़ाक मैं ने उड़ने ही नहीं दी है रह-ए-इश्क़ में गर्द मैं ने पड़ने ही नहीं दी तिरी पोशाक पे ख़ाक निस्बत-ए-ख़ाक पे शर्मिंदगी क्यों हो मुझ को दस्तकें देती है जा कर दर-ए-लौलाक पे ख़ाक ये जो तख़सीस-ए-ज़न-ओ-मर्द है ये वहम है बस तुम मुझे देखना जब पहुँचे मिरी चाक पे ख़ाक ये जो है आदमी का अज़्म-ए-सफ़र इस के तुफ़ैल नज़र आएगी किसी दिन रह-ए-अफ़्लाक पे ख़ाक यूँ भी तुम क्या हो फ़क़त ख़ाक 'तबस्सुम' बीबी और फिर बैठनी है आ के कल इस ख़ाक पे ख़ाक