दाग़-ए-दिल दाग़-ए-जिगर शम-ए-फ़रोज़ाँ हो गया उन के आते ही मिरे दिल में चराग़ाँ हो गया ऐ ख़याल-ए-यार तू दिल में जो मेहमाँ हो गया फिर दिल-ए-वीराँ मिरा रश्क-ए-गुलिस्ताँ हो गया थी मिरे दिल की उमंगों ही से दुनिया की बहार दिल परेशाँ क्या हुआ आलम परेशाँ हो गया देख सब ज़ख़्म-ए-जिगर अब बन गए गुलहा-ए-तर आ कि ये उजड़ा ख़राबा भी गुलिस्ताँ हो गया यास-ओ-नौमीदी की छाई जब मिरे दिल की घटा मतला-ए-उम्मीद को सूरज नुमायाँ हो गया दम मोहब्बत का भरा करता था जो दिल वस्ल में अब वो शाम-ए-हिज्र आते ही पशेमाँ हो गया