दिल के हर ज़र्रे में पैदा क़ैस की दुनिया करें आओ दामान-ए-नज़र को आज हम लैला करें तेरी शोख़ी और मेरे दिल की बेताबी को देख कर दिया राज़-ए-जुनूँ इफ़्शा बता हम क्या करें आँख में तस्वीर तेरी दिल में तेरी याद है और हम दुनिया में रह कर तू ही कह दे क्या करें फिर मिरे दिल में चलें आएँ वो बे-पर्दा कभी फिर मिरे जज़्बात में वो हश्र सा बरपा करें है जो दामान-ए-मिज़ा में एक क़तरा अश्क का जी में आता है कि इस क़तरे को अब दरिया करें सर्द पड़ जाए न 'फ़ाज़िल' गर्मी-ए-बाज़ार-ए-हुस्न आओ चढ़ कर दार पर फिर इक हश्र सा बरपा करें