दहन पर हैं उन के गुमाँ कैसे कैसे कलाम आते हैं दरमियाँ कैसे कैसे ज़मीन-ए-चमन गुल खिलाती है क्या क्या बदलता है रंग आसमाँ कैसे कैसे तुम्हारे शहीदों में दाख़िल हुए हैं गुल-ओ-लाला-ओ-अर्ग़वाँ कैसे कैसे बहार आई है नश्शे में झूमते हैं मुरीदान-ए-पीर-ए-मुग़ाँ कैसे कैसे अजब क्या छुटा रूह से जामा-ए-तन लुटे राह में कारवाँ कैसे कैसे तप-ए-हिज्र की काहिशों ने किए हैं जुदा पोस्त से उस्तुख़्वाँ कैसे कैसे न मुड़ कर भी बे-दर्द क़ातिल ने देखा तड़पते रहे नीम-जाँ कैसे कैसे न गोर-ए-सिकंदर न है क़ब्र-ए-दारा मिटे नामियों के निशाँ कैसे कैसे बहार-ए-गुलिस्ताँ की है आमद आमद ख़ुशी फिरते हैं बाग़बाँ कैसे कैसे तवज्जोह ने तेरी हमारे मसीहा तवाना किए ना-तवाँ कैसे कैसे दिल-ओ-दीदा-ए-अहल-ए-आलम में घर है तुम्हारे लिए हैं मकाँ कैसे कैसे ग़म-ओ-ग़ुस्सा ओ रंज-ओ-अंदोह-ओ-हिर्मां हमारे भी हैं मेहरबाँ कैसे कैसे तिरे किल्क-ए-क़ुदरत के क़ुर्बान आँखें दिखाए हैं ख़ुश-रू जवाँ कैसे कैसे करे जिस क़दर शुक्र-ए-नेअमत वो कम है मज़े लूटती है ज़बाँ कैसे कैसे