दौलत-ए-हुस्न की भी है क्या लूट आँखों को पड़ गई है लूटा-लूट चल रही है दिला हवा-ए-बहार लाला फूला है दाग़-ए-सौदा लूट सामने तेरे जो पड़े ऐ तुर्क उस में का'बा हो या कलीसा लूट चार दिन है बहार ऐ बुलबुल ज़र-ए-गुल का हज़ार तोड़ा लूट सफ़-ए-मिज़्गाँ से कह रही है वो चश्म दिल मिलें जितने बे-तहाशा लूट सर्फ़-ए-अल्लाह माल-ए-दुनिया कर मर्द है कुछ तो बहर-ए-उक़्बा लूट साफ़ दिल हो तो जल्वा-गर हो यार आइना हो तो हो तमाशा लूट नेमत-ख़्वान-ए-हुस्न जो मिल जाए ये समझ ले है मन्न-ओ-सल्वा लूट गौहर-ए-आबला हुए तो चले लेंगे दीवानो ख़ार-ए-सहरा लूट जानते हैं कि फ़ौज-ए-जंगी से नहीं सरदार फेर लेता लूट काम मर्दों का है ये ऐ 'आतिश' रखती है जान का भी खटका लूट