दलील-ए-सुब्ह-ए-ज़र्रीं है तू अज़्मत का निशाँ हो जा तिरा मंशूर ऐसा हो कि तू सीमीं गुमाँ हो जा कफ़-ए-सेहरा-ए-हस्ती से ख़ुमार-ए-सूफ़िया ले कर अनल-हक़ भी पुकारे जा चराग़-ए-ला-मकाँ हो जा दिखा दे जौहरी उंसुर कि हो दुश्मन ख़मीदा-सर ख़ुदी का राज़दाँ हो कर चमन का पासबाँ हो जा नसीहत-गर ख़िरद-आमेज़ असास-ए-मुल्क-ए-मुस्तहकम बहार-ए-अंजुमन दस्त-ए-अता सिर्र-ए-निहाँ हो जा वसीअ'उल-फ़िक्र हो कर तू कुलाह-ए-क़ैसरी पा ले मताअ'-ए-सरवरी दे कर फ़क़ीर-ए-बे-निशाँ हो जा सुरूर-ए-ज़िंदगानी ने शब-ए-कुल्फ़त-ज़दा बख़्शी दक़ीक़ा संज तू तदबीर से आतिश फ़शाँ हो जा निगहबान-ए-वतन ऐ बंदा-ए-मोमिन गुहर-अफ़शाँ शिगाफ़۔ए-सीना-ए-आ'दा का तू बाइ'स यहाँ हो जा दलील-क़ाते-ए-बातिल तिरी शमशीर हो 'अंजुम' अदू-ए-फ़ासिक़-ओ-फ़ाजिर अज़ीज़-ए-बे-कसाँ हो जा