दम ग़नीमत है कि वक़्त-ए-ख़ुश-दिली मिलता नहीं ये समाँ ये चैन दुनिया में कभी मिलता नहीं देखियो नफ़रत कि मेरा नाम गर लेवे कोई रू-ब-रू उस के, तो फिर वो उस से भी मिलता नहीं क्या करूँ नासाज़ी-ए-ताले'अ का मैं शिकवा कि आह जिस को जी चाहे है मेरा उस का जी मिलता नहीं खो के मुझ को हाथ से सुनते हो पछताओगे तुम मानो कहना भी कि मुझ सा आदमी मिलता नहीं किस तरफ़ जाता रहा क्या जाने वो वहशी-मिज़ाज ढूँडते फिरते हैं हम और 'मुसहफ़ी' मिलता नहीं