मोहतात ओ होशियार तो बे-इंतिहा हूँ मैं अमदन तिरा फ़रेब-ए-नज़र खा गया हूँ मैं क्या ये सुबूत कम नहीं मेरी वफ़ाओं का मैं आप कह रहा हूँ बहुत बेवफ़ा हूँ मैं ऐसे गिरा हूँ तेरी ख़ुदाई के सामने महसूस हो रहा है ख़ुदा हो गया हूँ मैं मेरे सुकूत को मिरी आवाज़ मत समझ इस पैरहन में तेरे सितम की सदा हूँ मैं ये इंतिहा है मेरे अदब की कि ऐ 'अदम' उस का वजूद हो के भी उस से जुदा हूँ मैं