दाम में हम को लाते हो तुम दिल अटका है और कहीं शेर पढ़ाने हम से और मज़मून गठा है और कहीं आँखें ज़रा मिलाना इधर को क्यूँ जी ये क्या बातें हैं बात की हम से उठानी लज़्ज़त जी का मज़ा है और कहीं हक़ तो है कुछ हाल-ए-दिल अपना कहते हैं जब तुम से हम कान लगाए सुनते हो पर ध्यान लगा है और कहीं देखियो ये अय्यारी कोई क्या क्या हम को लपेटे में वो बुत-ए-पुर-फ़न लेता है दिल जिस ने दिया है और कहीं टोक के उस से बात करूँ तो यूँ वो कहे है चितवन में मुझ को न छेड़ो ध्यान अजी इस वक़्त मिरा है और कहीं हम से ज़बानी मिलने को तुम कहते हो हम जानते हैं दिल से पर आने जाने का इक़रार किया है और कहीं देख के हम को जो कहते हो तुम आओ बैठो बात करो बातें ये सब ज़ाहिर की हैं उन्स हुआ है और कहीं अब तो कुछ हमदर्द से मेरे आते हो तुम मुझ को नज़र तुम सा शायद कोई प्यारे तुम को मिला है और कहीं बैठे हो मुझ पास व-लेकिन घबराने से निकले है आँख बचा कर उठ जाने का ध्यान बँधा है और कहीं ज़ाहिर में तुम कहते हो मुझ को बैठो अभी तो जाओ न घर मुझ को तो मालूम है जो पैग़ाम गया है और कहीं बातें कर के लगावट की ये काफ़िर हूँ गर झूट कहूँ दिल को मिरे तुम लेते हो जी नाम-ए-ख़ुदा है और कहीं हैफ़ है उस के होने पर जो याद करो तुम ग़ैर को जान 'जुरअत' में जो नहीं सो ऐसी बात वो क्या है और कहीं