दामन है मेरा दश्त का दामान दूसरा मेरी तरह न फाड़े गरेबान दूसरा यक-रंग हूँ मैं उस गुल-ए-रअना के इश्क़ में बुलबुल न हूँ कि ढूँडूँ गुल्सितान दूसरा था ही ग़म-ए-फ़िराक़ मिला उस में दर्द-ए-रश्क मुफ़्लिस के घर में आया ये मेहमान दूसरा तेरी हया-ए-चश्म सा देखा नहीं रक़ीब याँ एहतियाज क्या है निगहबान दूसरा उर्यां-तनों के सर पे तिरी ख़ाक-ए-कू रहे दर-कारवाँ नहीं सर-ओ-सामान दूसरा कीजे ज़मीर-ए-ख़ाक को आदम की छान अगर उस शक्ल का बन आवे न इंसान दूसरा जू-उल-बक़र रखे ये शैख़-ए-शिकम-परस्त इक ख़्वान खा कहे है कहाँ ख़्वान दूसरा सैर-ए-अजब रखे है तिरी जल्वा-गाह-ए-नाज़ इस लुत्फ़ का कहाँ है ख़्याबान दूसरा नक़्द-ए-दिल उस को देना है 'हसरत' सवाब ओ फ़र्ज़ उस ज़ुल्फ़ सा न होगा परेशान दूसरा